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भारत में प्रारं भभक मध्ययुगीन काल केवल न एक बहुत ही भववादास्पद अभितु सशं भकत कालक्रम है क्यंभक इसकी

सीमाएं असम और भवभवधतािूर्ण हैं . यहााँ तक भक ले भकन गुप्ता काल के बाद के काल के कालक्रमयं कय भी तय
करना मु श्किल है । इसके अलावा लं बे समय तक इस अवभध कय इभतहासकारयं ने या तय अिने भवचारयं का केंद्र नहीं
माना या भिर प्राचीन और आधुभनक काल के बीच के िररवतणन की अवभध के रूि में अध्ययन भकया गया था। इसके
अलावा, गुप्त शताश्किययं के बाद अंध युग के भवचार कय ले कर भवद्वानयं के बीच एक िूवाण ग्रह रहा है . प्रारं भ में राष्ट्रवादी
इभतहासकारयं ने गुप्त सभदययं कय "स्वर्ण युग" के रूि में दे खने की कयभशश की और उसके बाद की सभदययं कय "अंध
युग" करार भदया गया। समय के साथ इन नामयं कय चुनौती दी गई और मार्क्णवादी भवद्वानय ने आभथण क गभतशीलता
की ओर इशारा भकया , व सामाभिक-आभथण क समस्याययं का उद्भव गुप्ता के बाद नहीं अभितु गुप्त काल से ही दे खना
आरम्भ भकया। इस अवभध कय िररभाभित करने के भलए नई श्रे भर्ययं की शु रूआत हुई. इस प्रकार हम 1 9 50 और 1
9 60 के दशक के दौरान "भारतीय सामं तवाद" मॉडल मिबूत तरीके से उभरने लगा। इस प्रमु ख मॉडल ने भभवष्य
के भवमशो की नींव कय स्थाभित भकया। भसक्के इस िररिेक्ष्य में बहुत महत्विूर्ण भू भमका भनभाते हैं क्यंभक शु रुआती
मध्ययुगीन भारत में भसक्कय की कमी एक आवती भवचार था भिसका उिययग सामं तवाद की बहस के समथण न में
भकया िाता रहा। हमें इस अवभध के मौभद्रक और आभथण क इभतहास की बारीभकययं कय समझने के भलए इस बहस िर
भवचार करना चाभहए।

1 9 50 के दशक में हम आभथणक कारनामे के एक नए रुझान कय दे खते हैं । उभिन्दर भसंह,इस समय के दौरान के
अनु सार हमें बी.के.दत्त और डी.डी . कयसंबी िै से भवद्वान भमलते हैं िय आभद गुप्त काल के भवचार कय चुनौती दे ते हैं
और इस अवभध से आगे हयने वाले आभथण क बदलावयं कय इं भगत करते हैं , भिसे बाद में सामंती अवभध कहा िाता था।
वास्तव में यह डीडी कयसंबी थे भिन्यंने िहली बार अथण व्यवस्था की भगरावट और गुप्ता सभदययं के बाद से भसक्कय की
कमी का सुझाव भदया था, यहां तक भक िी.एल. गुप्ता ने इस अवभध से भसक्कय के भनराशािनक सबूत सुझाते हैं ।
ले भकन इस अवभध में आर.एस. शमाण िय िहले भारतीय सामंतवाद में और बाद में अिने काम शहरी क्षय में ऐसी
प्रभक्रयाओं का सुझाव भदया था। शमाण का कहना है भक लं बी अनु दैध्यण प्रभक्रया भिसमें भू भम अनु दान चाटण र के आने
और राज्य के िररर्ामी सामं तीकरर् ने केंद्रीय स्तर िर रािस्व संग्रह या भसक्का ढकने की प्रभक्रया कय कम करने के
साथ-साथ मां ग और आिूभतण तंत्र की कमी का भी कारर् बना भिसके कारर् धातु के भसक्कय का उिययग असंभव
हुआ और इस अवभध में िुराताश्कत्वक स्तर िर भसक्कयं की कमी का गवाह है , िय 11 वीं शतािी तक व्यािार श्कस्थभतययं
में धीरे -धीरे सुधार हयने तक िारी रहा। लेभकन इस धारर्ा की आलयचना कई भवद्वानयं द्वारा की गई है , हालां भक
भवद्वानयं का वास्तभवक कायणकारर् के संबंध में भवचार असम व भवभाभित है । उदाहरर् के भलए, रे खा िै न ने अिनी
िुस्तक 'प्राचीन भारतीय भसक्का' में 1 99 5 में प्रकाभशत भकया था, भिसमें शमाण के तकण का समथण न भकया है भक 5 वीं
से 8 वीं शतािी सीई के बीच धातु के भसक्के [व्यािार और वाभर्ज्य दयनयं के आं तररक और बाहरी दयनयं के घटने के
कारर्] की कमी हुई, लेभकन धन अथण व्यवस्था का आं भशक िुनरुद्धार 9वीं शतािी सी ई से ही आरम्भ हय गया था.
सयने के भसक्कयं दु लणभ थे , चां दी-तां बे संख्या-गुप्ता अवभध (500-800 सी ई) के दौरान कई संख्या में नहीं थे और
ज्यादातर िारी भकए िाने वाले भसक्के गुप्त भसक्कयं की नकल थी। ले भकन िॉन डीयल ने इस धारर्ा की आलयचना
की है और एक वैकश्किक भवचार का उल्लेख भकया गया है िय बताता है भक भसक्कयं की कमी के कारर् मां ग की
कमी नहीं बश्कि मां ग की अभधकता उत्तरदायी थी भिसके भलए अथण व्यवस्था में उभचत आिूभतण नहीं थी। उन्यंने
खाडी क्षेत्र और अरब दु भनया के साथ-साथ आं तररक व्यािार में व्यािार के भवस्तार का सुझाव भदया भिससे इस तरह
के बडे स्तर िर कीमती धातुओं के भसक्के िारी करना संभव नहीं था। इस प्रकार हम यहां दय घटनाओं कय ढू ं ढते हैं -
सबसे िहले भसक्कयं की मां ग से भनिटने के भलए भवभभन्न धातुओं कय एक साथ भमभश्रत भकया गया था, हालां भक भसक्कयं
में आगे चलकर अिस्फीभत के कारर् भगरावट आई ले भकन यह बढ़ती मां ग कय िूरा करने के भलए थी। दू सरे हम
िाते हैं भक वैकश्किक स्रयतयं के उिययग के रूि में शं ख सीभिययं का मु द्रा रूि में प्रययग के अवशे ि हमें इस अवभध
के साभहत्य के माध्यम से और साथ ही िुरातत्व के माध्यम से भमलते हैं । इसी प्रकार आं द्रे भवंक ने सुझाव भदया है भक
व्यािार ने टवकण के भवस्तार के बाद एकीकृत मु द्रा िर ियर भदया गया, इसभलए मु द्रा के उिययग के भलए वास्तव में
नए भसक्कयं के उत्पादन की आवश्यकता नहीं है क्यंभक भवदे शी भसक्कयं का भी मु द्रा के भलए उिययग भकया िाता था।
हालां भक भवद्वानयं ने अिनी सां श्कख्यकीय अशु श्कद्धययं आभद के भलए डे यल की आलयचना की है। यहां तक भक आरएस
शमाण भी बताते हैं भक हालां भक वे िंिाब के शाह शासकयं या कश्मीर में कुछ शासकयं द्वारा भसक्कयं के भसक्के अिनाने
के भवचार से सहमत हैं , और यहां तक भक भवदे शी भसक्के भी इस्ते माल में थे लेभकन अलग-अलग संग्रहालययं में
भसक्कयं िर भकये गए उनके अध्ययन के आधार िर उन्यंने िता लगाया है भक भसक्कयं की संख्या तीसरी-िां चवीं सदी
की तुलना में 7 वीं -10 वीं सदी के बीच कािी भगरती है । यहां तक भक रयभमला थािर बताती हैं भक 7 वीं और 10 वीं
शतािी के बीच गुप्ता अवभध के बाद अच्छी गुर्वत्ता वाले सयने के भसक्कयं की समाश्कप्त हुई थी। यद्यभि भसक्कयं की
कमी सामान्य समस्या है , वहां क्षे त्रीय भभन्नताएं हयती हैं , भिसमें हमें ग्रंथयं में नाटक, दु बारा, भनष्का, रूयाया, गद्ययाक
िै से शि भमलते हैं । उसी तरह साथ ही वह और िी.एल. गुप्ता इं डय सैसानी शासकयं द्वारा भसक्कयं की ढु लाई के बारे
में बताते हैं , हालां भक िी.एल.गुप्ता बताते हैं भक इस अवभध के कई भसक्कयं ने गुप्त भसक्कयं की नकल की थी। आर एस
शमाण तीसरी-िां चवीं शतािी सीई और 7 वीं -10 वीं शतािी सीई के बीच भसक्कयं का तुलनात्मक अध्ययन करते है ।
उन्यंने कहा भक िब हम भिछली अवभध से लगभग 20000 भसक्कयं के नमू नयं का िता लगाते हैं , तय भिछले अवभध की
तुलना में यह मात्रा बहुत कम है । वह भारत के भवभभन्न संग्रहालययं के आाँ कडयं का उिययग करता है और इन दयनयं
काल के भसक्कयं के अनु िात की गर्ना करता है । वह एक भतमाही के अनु िात की गर्ना करता है हालां भक इस
भवचार की गंभीर आलयचना शमाण डीसी सरकार से आई हैं । सरकार बताते हैं भक इस भवचार में कई समस्याएं हैं .
िहला, भसक्कयं की ढु लाई का अभाव भसक्कयं की कमी का सुझाव नहीं दे ता क्यंभक भसक्कयं का िीवनकाल रािवंश
की रािनीभतक समय सीमा से अभधक प्रचलन में रहता है । उन्यंने सुझाव भदया भक िुराने भसक्कयं कय व्यािार के
उद्दे श्य के भलए उिययग में लाया गया था और इस प्रकार नए खनन की आवश्यकता नहीं है । इसके अलावा हम
कयडी के गयले का इस्ते माल बडे िैमाने िर भसक्के के रूि में करते हैं । उन्यंने यह दावा भकया भक इन कौभडययं कय
भसक्कयं के भवकि के रूि में नहीं दे खा िाना चाभहए बश्कि वास्तव में वे व्यािार के भलए वैध भवभनमय मू ल्य हैं।
तीसरी बात हालां भक वह इस तथ्य कय मानते हैं भक इस समय के कई सत्तारूढ़ शासकय ने अिने भसक्के िारी नहीं
भकए थे , ले भकन हम उसी समय बंगाल के इलाकयं में िाल और सेना शासकयं के क्षे त्र में प्रचुर मात्रा में भसक्कयं की
प्रचुरता में थे । चौथाई वह संग्रहालययं और भवद्वानयं के तरीकयं व दृभष्ट्कयर् की आलयचना करता है , िय एक बडे
केंद्रीकृत संरचना की खयि के भलए क्षे त्रीय भसक्कयं का भरयसा नहीं करते। वह भारत में क्षेत्रीय इभतहास की कमी िर
अिसयस करते हैं । उनके अनु सार संग्रहालय में भसक्कयं की संख्या व भसक्कयं की अभधक मात्रा के बिाय भसक्के की
अभधक भकस्यं में अभधक रुभच रखते हैं इसभलए भसक्कयं की असली मात्रा का कयई संकेत यहााँ से प्राप्त नहीं हय िाता
है ।

शमाण के भलए आगे आलयचना बी.एन. मु खिी द्वारा की गयी है । B.N. मु खिी शमाण के तकण का भवरयध करते हैं भक
भसक्कयं के कम इस्ते माल से व्यािार में कमी आ रही है । इसके भविरीत, वह सुझाव दे ते हैं भक भारत में 700 से 1200
सीई तक समृ द्ध व्यािार था। उन्यंने भबहार, िभिम बंगाल और बां ग्लादे श सभहत मध्य-िूवी भारत में अिने शयध िर
ध्यान केंभद्रत भकया, भिसमें भदखाया गया भक इस शु रुआती मध्ययुगीन काल में अभधकां श भसक्का िाल और सेन
शासकय द्वारा िारी भकया गया था। मु द्रा के रूि में सयने / चां दी की धूल और कौडी कयई कमी नहीं थी। सयने और
चां दी की इकाइयां शायद भवभनमय के एक माध्यम के रूि में भी काम करती हैं , क्यंभक वे संभदग्ध मू ल्य के भसक्कयं
की तुलना में बेहतर सेवा दे ते हैं । प्रारं भभक मध्ययुगीन बंगाल के संबंध में , मु खिी का तकण है भक उच्च गुर्वत्ता वाले
चां दी की मु द्रा 7 वीं से 13 वीं शतािी सीई के बीच खनन और प्रसाररत की गई थी। इन भसक्कात्मक प्रमार्यं ने बंगाल
में और कुछ हद तक उत्तर भारत में भी कीमती धातु की मु द्रा के अश्कस्तत्व का सुझाव भदया । इस इभतहासकार ने
9वीं शतािी सीई से शुरू हुए हररकेला शासन के मै टरयलॉिी, आकार और भनष्पादन में बदलाव कय भी बताया है , िय
सुधाररत अरबी मु द्रा का उदाहरर् है । शमाण की िररकिना के समथण कयं ने कहा भक 'मु ख्य रूि से ग्रामीर् िीवन की
सादगी ... और उनके सेनाओं के रखरखाव िर िाल और सेना के शासकयं के भारी खचण भी धन की उिययभगता
सीभमत हय गयी। एक और कारर् आगे रखा सुरक्षा की कमी थी कयंकर् तट की तरह, बंगाल की खाडी का क्षे त्र भी,
समु द्री डाकू की गभतभवभधययं के प्रभत अभतसंवेदनशील था.

अंत में भवचार करने के भलए एक और बात यह है भक कािीक्षे त्रीय भभन्ताएं है भिसिर भवमशण करना आवश्यक है ।
डी डी कयसंबी, िाठ्य, िुराताश्कत्वक और सां श्कख्यकीय आं कडय के िभटल संिकण के माध्यम से भसक्कयं कय प्रौद्ययभगकी
अथण व्यवस्था और उिभयक्ता व्यवहार और राज्य की भू भमका कय समझने का प्रयास करते है । धातु के स्पशण के
माध्यम से भसक्कयं के इस्ते माल के दौरान घिण र् के अध्ययन में इस भसद्धां त के अनु सार हर 12 साल से 0.5 ग्राम की
दर से अिना आं तररक भार खय दे ता है और इस प्रकार कुछ विों के बाद हम चेहरे और वास्तभवक मू ल्य के बीच
असमानता की श्कस्थभत में आते हैं . यह भसद्धां त हमें आभथण क प्रभक्रयाओं कय भसिण राज्य और अथण व्यवस्था की वृश्कद्ध और
भगरावट से िु डे अध्ययन की तुलना में और अभधक गभतशील तरीके से अध्ययन करने की अनु मभत दे ता है , । यह
भसक्कयं के िीछे भचन्यं की व्याख्या में भी हमारी मदद करता है । डी.सी. दू सरी तरि सरररक ने भारतीय उिमहाद्वीि
में भसक्कयं का अध्ययन कैसे भकया, इसके आधार िर यह चुनौती दी है । संग्रहालय क्ूरेटर के भसक्कयं कय व्यवश्कस्थत
करने के रास्ते में उनकी मु ख्य आलयचनाओं में से एक है । उनके अनु सार, क्ूरेटर अभधक भसक्कयं की अभधक मात्रा
तक िहुं चने के बिाय भसक्कयं की अभधक भकस्यं में अभधक रुभच रखते हैं । यह एक खास अवभध में प्रचलन में भसक्कयं
की मात्रा के संबंध में एक झूठी छभव िैदा करता है । यह िहलू प्रारं भभक मध्ययुगीन भसक्के के अध्ययन में भवशे ि रूि
से महत्विूर्ण है क्यंभक हम दे खते हैं भक इस अवभध के दौरान भसक्कयं की अनु िश्कस्थभत ने आर.एस. शमाण मानते हैं भक
प्रारं भभक मध्ययुगीन काल भसक्कयं की कमी कय दशाण ता है । इसी तरह, गुप्ता अवभध के दौरान उिलब्ध भवभभन्न भसक्कयं
कय भनभित रूि से शहरी समृ श्कद्ध का संकेत माना गया है । वह इसी तरह भसक्कयं के साथ गहन और व्यािक
अकादभमक भवमशण की अनु िश्कस्थभत कय बताते हैं । इभतहासकार और भसक्कावाभदययं के बीच कुछ दू री इस अथण में है
भक इभतहासकार अर्क्र गहराई से ध्यान में रखते हुए अभनच्छु क है या प्राथभमक साक्ष्य की अभधकता में तल्लीन करने
के भलए भवभधभवज्ञानी असमथण है और इसी तरह एक भसक्कावाभदययं में ऐभतहाभसक निररया की अिेक्षा है । शकुल
कुंडरा के अनु सार यह तस्वीर उत्तर भारत की तुलना में दभक्षर् भारत के बारे में बहुत स्पष्ट् है क्यंभक हमें दभक्षर्
भारत में भसक्के के बहुत स्पष्ट् सबूत भमलते हैं और बी.एन. मु खिी और डी.सी.सरकार िै से भवचारकय ने राष्ट्रकूट
साम्राज्य के अध्ययन के आधार िर भसक्के की कमी िर ध्यान दे ने के भलए शमाण की आलयचना की है । ले भकन उसी
समय, हालां भक आर.एस.शमाण इस तथ्य का तकण करते हैं भक हालां भक भसक्का दभक्षर् भारत में भवशे ि रूि से चयल
साम्राज्य के मामले में िारी भकए गए थे ले भकन इस समय के दौरान धातु की मात्रा और शुद्धता इसके अिेभक्षत स्तर
से नीचे आई थी। ले भकन हम 1 9 80 के दशक में भी दे ख सकते हैं भक दभक्षर् भारत में केसुवन वेलुथात व नयबयरू
कराभशमा इत्याभद के कामयं में सुझाव भदया गया है भक भू भम अनु दान की प्रकृभत न केवल क्षे त्रयं में भभन्न है , बश्कि भू भम
के स्वाभमत्व में भी राज्य के स्वाभमत्व में है या मं भदर या एक स्वायत्त आत्मभनभण र इकाइययं हय इन सभी मामलयं में , इन
क्षे त्रयं में सामाभिक-आभथण क िैटनण भभन्न हयते हैं ।

अंत में , हम क्ा बता सकते हैं भक प्रारं भभक मध्ययुगीन काल कय अखं ड तरीके से नहीं दे खा िाना चाभहए और इस
अवभध का अध्ययन करते समय ऐभतहाभसकता और गभतशीलता िर भवचार भकया िाना चाभहए। उसी समय हमें यह
समझने की आवश्यकता है भक हालां भक भारतीय सामं ती िै सी वैचाररक श्रे भर्यां इस अवभध कय समझने के भलए
महत्विूर्ण हैं , तथाभि इन श्रे भर्ययं कय हमारे अध्ययन की समसरता में बाधा नहीं ले नी चाभहए। भसक्कय के अध्ययन में
आये बदलावयं कय स्थानीय मानदं डयं के भीतर माना िाना चाभहए और भवचारयं कय सामान्यकृत नहीं करना चाभहए।
भसक्का हमारे अध्ययन काल के समाि की बदलती सामाभिक आभथण क गभतशीलता कय समझने के भलए बहुत
महत्विूर्ण िहलू है ।

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